जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के भारत सरकार के फैसले से पाकिस्तान बौखला गया और उसने इस मुद्दे को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने की कोशिश की। लेकिन संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने यह कहते हुए हस्तक्षेप से इनकार कर दिया कि भारत और पाकिस्तान के बीच समझौते पहले से मौजूद हैं, जिनमें शिमला समझौता प्रमुख है।
भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते सुधारने और आपस में सहयोग बढ़ाने के लिए एक समझौता हुआ, जिसे शिमला समझौता कहा गया। इस पर इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए। इस समझौते में मुख्य बात यह थी कि दोनों देशों ने 17 सितंबर 1971 को युद्ध रोकने (युद्धविराम) का फैसला किया और तय किया कि 20 दिनों के अंदर दोनों देशों की सेनाएं अपनी-अपनी सीमाओं पर वापस चली जाएंगी।
By-Sanjeet Choudhary

शिमला समझौता क्या है:shimla agreement 1972?
शिमला समझौता 2 जुलाई 1972 को भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और पाकिस्तान के तत्कालीन राष्ट्रपति जुल्फिकार अली भुट्टो के बीच हुआ था। यह समझौता 1971 के युद्ध के बाद दोनों देशों के रिश्ते सुधारने के लिए किया गया था। उस युद्ध में पाकिस्तान के 93,000 सैनिकों ने आत्मसमर्पण किया था।
भारत और पाकिस्तान के बीच रिश्ते सुधारने और आपस में सहयोग बढ़ाने के लिए एक समझौता हुआ, जिसे शिमला समझौता कहा गया। इस पर इंदिरा गांधी और जुल्फिकार अली भुट्टो ने हस्ताक्षर किए। इस समझौते में मुख्य बात यह थी कि दोनों देशों ने 17 सितंबर 1971 को युद्ध रोकने (युद्धविराम) का फैसला किया और तय किया कि 20 दिनों के अंदर दोनों देशों की सेनाएं अपनी-अपनी सीमाओं पर वापस चली जाएंगी।
भारत और पाकिस्तान ने तय किया कि वे बराबरी और आपसी फायदे के आधार पर एक-दूसरे के अंदरूनी मामलों में दखल नहीं देंगे।
दोनों देश डाक, तार, समुद्री रास्ते, सीमा डाक सेवा, और हवाई यात्रा जैसे संचार के सारे साधन फिर से शुरू करेंगे।
इसके अलावा, वे अपने-अपने देश में ऐसे उग्र लोगों (जिनकी बातें या हरकतें दूसरे देश के खिलाफ हों) को रोकने के लिए हर मुमकिन कोशिश करेंगे।
दोनों देश शांति बनाए रखने, युद्धबंदियों और आम नागरिकों की अदला-बदली, जम्मू-कश्मीर के मुद्दे का हल और राजनयिक संबंधों को सामान्य बनाने के लिए बातचीत करते रहेंगे और समय-समय पर एक-दूसरे के प्रतिनिधि मिलते रहेंगे।

इस समझौते के प्रमुख बिंदु थे:
- दोनों देश आपसी विवादों को शांतिपूर्वक और बातचीत के जरिए सुलझाएंगे।
- कोई भी देश एकतरफा सीमा परिवर्तन की कोशिश नहीं करेगा।
- दोनों देश एक-दूसरे की प्रादेशिक अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करेंगे।
- व्यापार, संचार, यात्रा और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा दिया जाएगा।
- एलओसी (लाइन ऑफ कंट्रोल) को 1971 की स्थिति के अनुसार मान्यता दी गई।
शिमला के राजभवन में देर रात इस समझौते पर दस्तखत हुए।
पाकिस्तान को उम्मीद नहीं थी कि समझौता होगा, इसलिए उनका दल दिन में ही सामान भेज चुका था। लेकिन इंदिरा गांधी की कूटनीतिक चालों ने आखिरकार पाकिस्तान को तैयार कर लिया।
इस समझौते की खास बात यह है कि इसमें यह स्पष्ट रूप से लिखा गया कि भारत और पाकिस्तान किसी भी तीसरे पक्ष को बीच में नहीं लाएंगे और आपस में ही मुद्दों को सुलझाएंगे। इसी आधार पर आज भी भारत कश्मीर मुद्दे पर किसी भी बाहरी मध्यस्थता को खारिज करता है।

दोनों देश अपनी-अपनी जगह पर बने रहेंगे और इसे ही एलओसी यानी सीमा रेखा माना जाएगा। समझौते में कहा गया कि 17 दिसंबर 1971 की स्थिति के अनुसार दोनों देश अपनी-अपनी जगह पर रहेंगे और इसे एलओसी माना जाएगा। साथ ही, इसमें यह भी लिखा गया कि दोनों देश अपने विवाद आपस में, बिना किसी तीसरे पक्ष की मदद के, मिल-जुलकर सुलझाएंगे। इसी के दम पर भारत आज तक तीसरे पक्ष को दूर रखने में सफल रहा है।
एक दिलचस्प बात यह है कि भुट्टो अपनी पत्नी के साथ नहीं, बल्कि अपनी 18 साल की बेटी बेनजीर भुट्टो के साथ भारत आए थे, जिसे देखने के लिए पूरा शिमला उत्साहित हो गया था।
गौर करने वाली बात यह है कि शिमला समझौते की पहल जुल्फिकार अली भुट्टो ने की थी।