हाल ही में USA ने India पर बड़ा आर्थिक दबाव बनाया है। 7 अगस्त 2025 से भारत पर 25% Tariff लागू किया जाएगा। इसका कारण है भारत का Russia से सस्ता Crude Oil और रक्षा उपकरण खरीदना। यह कदम भारत और रूस के रणनीतिक रिश्तों को प्रभावित करने के साथ-साथ देश की ऊर्जा नीति पर भी बड़ा असर डाल सकता है।
Russia से तेल खरीद पर असर
अमेरिका के टैरिफ की घोषणा के बाद भारत की प्रमुख सरकारी तेल कंपनियों ने रूस से स्पॉट मार्केट के जरिए तेल खरीदना बंद कर दिया है। स्पॉट मार्केट वह जगह है जहां तेल तुरंत और कम कीमत पर खरीदा जाता है। इंडियन ऑयल, भारत पेट्रोलियम, हिंदुस्तान पेट्रोलियम और मंगलोर रिफाइनरी जैसी बड़ी कंपनियां, जो देश की 60% से अधिक रिफाइनिंग क्षमता संभालती हैं, अब रूस से सस्ता तेल नहीं ले रही हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि अमेरिकी टैरिफ और संभावित प्रतिबंधों के डर से ये कंपनियां वैश्विक वित्तीय बाजार से कटने का जोखिम नहीं लेना चाहतीं।

पेट्रोल-डीजल की कीमतों पर असर
रूस से सस्ता तेल न मिलने के कारण अब इन कंपनियों को मिडिल ईस्ट या अन्य महंगे स्रोतों से तेल खरीदना होगा। इससे रिफाइनरियों की लागत बढ़ेगी और उनका मुनाफा घटेगा। इसका नतीजा सीधे आम उपभोक्ता तक पहुंचता है और पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ सकती हैं। विशेषज्ञों का कहना है कि अगर यह स्थिति बनी रही तो ईंधन की कीमतों में तेजी आना तय है।
PSU: प्राइवेट कंपनियों की रणनीति अलग
जहां सरकारी कंपनियां रूस से तेल खरीदना बंद कर चुकी हैं, वहीं रिलायंस इंडस्ट्रीज और नयारा एनर्जी अब भी रूस से तेल खरीद रही हैं। ये कंपनियां टर्म डील के तहत तेल खरीदती हैं, जिसमें कीमत और मात्रा पहले से तय होती है। इसलिए अभी इन पर अमेरिकी टैरिफ का प्रभाव नहीं पड़ा है। पिछले साल इन कंपनियों ने यूरोप को रिफाइंड प्रोडक्ट्स का निर्यात करके अच्छा मुनाफा कमाया है।
रूस की अहमियत
रूस भारत का सबसे सस्ता और भरोसेमंद तेल सप्लायर रहा है। वित्त वर्ष 2024-25 में भारत ने रूस से लगभग 50 अरब डॉलर का तेल आयात किया, जो भारत की कुल खपत का लगभग एक तिहाई है। अगर रूस से तेल की आपूर्ति बंद हुई तो भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर बड़ा सवाल खड़ा होगा क्योंकि मध्य पूर्व जैसे विकल्प महंगे और अस्थिर हो सकते हैं।
अमेरिकी दबाव और सरकार की चुनौतियां
अमेरिका ने रूस से व्यापार करने वाले देशों को 100% तक अतिरिक्त पेनल्टी लगाने की धमकी दी है। इस वजह से भारत की स्थिति जटिल हो गई है। सरकारी कंपनियों को डर है कि रूस से तेल लेना जारी रखा तो वे ग्लोबल फाइनेंस से कट सकती हैं, जिससे सप्लाई चेन प्रभावित होगी और लागत बढ़ेगी।
सरकार के सामने अब तीन मुख्य चुनौतियां हैं:
- तेल की कीमतों को नियंत्रण में रखना
- सप्लाई सुनिश्चित करना
- अमेरिका के साथ संबंधों को बनाए रखना
वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने कहा है कि भारत अपनी ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों से समझौता नहीं करेगा, लेकिन अंतरराष्ट्रीय नियमों का भी पालन करेगा। सरकार ने मध्य पूर्व, अफ्रीका और अमेरिका से तेल आयात बढ़ाने की योजना बनाई है।
टैंकरों का संकट
कुछ तेल टैंकर जो रूस से भारत की ओर आ रहे हैं, वे गुजरात और महाराष्ट्र तट के पास फंसे हुए हैं। यूरोपीय संघ और यूके के प्रतिबंधों के कारण ये टैंकर बंदरगाह पर दाखिल नहीं हो पा रहे। अगर ये स्वीकार किए गए, तो अमेरिका से पेनल्टी लग सकती है, और अगर नहीं तो सप्लाई में कमी और बढ़ती लागत का सामना करना पड़ेगा।
FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले सवाल)
1. भारत पर अमेरिका ने टैरिफ क्यों लगाया?
अमेरिका ने इसलिए टैरिफ लगाया क्योंकि भारत रूस से सस्ता तेल और रक्षा उपकरण खरीद रहा है, जिससे अमेरिका को व्यापारिक नुकसान हो रहा है।
2. क्या इससे पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ेंगी?
हाँ, रूस से सस्ता तेल न मिलने के कारण कीमतों में बढ़ोतरी हो सकती है क्योंकि अब महंगे तेल स्रोतों से खरीदारी करनी पड़ेगी।
3. क्या निजी कंपनियां भी रूस से तेल खरीदना बंद कर देंगी?
नहीं, रिलायंस और नयारा जैसी कंपनियां टर्म डील के तहत तेल खरीद रही हैं, इसलिए अभी उन पर टैरिफ का असर नहीं पड़ा है।
4. भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर इसका क्या प्रभाव होगा?
रूस से तेल बंद होने पर भारत को महंगे और कम भरोसेमंद स्रोतों पर निर्भर रहना पड़ेगा, जिससे ऊर्जा सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।