भारत ने एक बार फिर साबित कर दिया कि वह किसी के दबाव में नहीं झुकता। हाल ही में अमेरिका की ओर से भारत पर व्यापार और तेल खरीद को लेकर दबाव डाला गया, लेकिन भारत ने स्पष्ट कर दिया कि वह अपनी नीतियों पर अडिग रहेगा। इसके साथ ही भारत और रूस के बीच संबंध और मजबूत हो रहे हैं, जिसका ताजा उदाहरण नई दिल्ली में हुए 11वें भारत-रूस वर्किंग ग्रुप सेशन में साइन किए गए समझौतों में देखा जा सकता है।
भारत-रूस के नए समझौते
हालिया बैठक में भारत और रूस ने कई अहम क्षेत्रों में सहयोग बढ़ाने का फैसला किया। इनमें शामिल हैं:
- औद्योगिक आधुनिकीकरण और तकनीक हस्तांतरण – दोनों देश मिलकर नई मैन्युफैक्चरिंग तकनीकों पर काम करेंगे। रूस “मेक इन इंडिया” और “आत्मनिर्भर भारत” को समर्थन देगा।
- रक्षा और एयरोस्पेस – विमानन तकनीक, पिस्टन इंजन उत्पादन और विंड टनल टेस्टिंग की सुविधाएं विकसित होंगी। भारत में नई रक्षा उत्पादन इकाइयां लगाई जाएंगी।
- रेलवे नेटवर्क का आधुनिकीकरण – रूस भारत के रेलवे नेटवर्क को आधुनिक बनाने में मदद करेगा, जिसमें हाई-स्पीड ट्रेन और नई सुरक्षा तकनीकें शामिल होंगी।
- उर्वरक और रसायन – रूस भारत को फॉस्फेट और पोटाश आधारित उर्वरक सप्लाई करेगा, जो किसानों के लिए बेहद जरूरी हैं।
- एल्यूमिनियम और रेयर अर्थ खनिज – दोनों देश मिलकर बॉक्साइट और रेयर अर्थ तत्वों की खोज करेंगे, जो बैटरी, इलेक्ट्रॉनिक्स और ग्रीन तकनीक में उपयोग होते हैं।
- 3D प्रिंटिंग और वेस्ट मैनेजमेंट – रूस भारत को 3D प्रिंटिंग और कचरा प्रबंधन में तकनीकी मदद देगा।

रूस के लिए भारत का महत्व
रूस के लिए भारत एक भरोसेमंद साझेदार है, खासकर जब पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए हैं। भारत ने रूस का साथ देकर दिखाया कि वह किसी भी वैश्विक दबाव में नहीं आएगा। साथ ही, भारत का विशाल बाजार रूस के लिए एक बड़ा अवसर है। रूस भी चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है और भारत के साथ संबंधों को मजबूत करके अपने विकल्प बढ़ा रहा है।
भारत का दुनिया को संदेश
भारत ने साफ कर दिया है कि वह किसी भी दबाव में नहीं झुकेगा। उसकी विदेश नीति “गैर-आबद्ध” और “बहु-आबद्ध” सिद्धांत पर टिकी है, यानी किसी एक गुट में शामिल हुए बिना सभी से रिश्ते रखना।
रूस के साथ मजबूत रिश्ते और BRICS जैसे मंचों पर भारत की सक्रियता बताती है कि भारत बहुध्रुवीय (multi-polar) दुनिया बनाने की दिशा में आगे बढ़ रहा है।
अमेरिका का दबाव और भारत का जवाब
अमेरिका ने भारत पर 50% तक टैरिफ लगा दी और रूस से तेल खरीदने पर रोक लगाने की बात कही। इसके अलावा अमेरिका चाहता था कि भारत अपने डेयरी और कृषि क्षेत्र को खोल दे। लेकिन भारत ने साफ कर दिया कि ये उसकी रेड लाइन है, जिसे कोई पार नहीं कर सकता। भारत ने कहा कि वह अपने किसानों और राष्ट्रीय हितों की रक्षा करेगा, चाहे इसके लिए कोई भी कीमत चुकानी पड़े।
भारत का पुराना रुख – दबाव में न झुकना
भारत की विदेश नीति हमेशा से ही स्वतंत्र रही है। इतिहास गवाह है कि भारत ने बाहरी दबाव में कभी फैसले नहीं लिए।
- 1970 – न्यूक्लियर नॉन-प्रोलिफरेशन ट्रीटी पर हस्ताक्षर करने के लिए दुनिया ने दबाव डाला, लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने मना कर दिया।
- 1998 – अटल बिहारी वाजपेयी सरकार के समय परमाणु परीक्षण के बाद अमेरिका ने भारत पर कड़े प्रतिबंध लगाए, लेकिन भारत अपने फैसले पर कायम रहा।
- 2025 – आज भी भारत का यही रुख है। अमेरिका की धमकियों के बावजूद भारत ने कहा कि वह अपने व्यापार और विदेश नीति को अपनी शर्तों पर ही चलाएगा।
निष्कर्ष
अमेरिकी दबाव के बावजूद भारत और रूस के रिश्ते और मजबूत हुए हैं। यह भारत की कूटनीतिक ताकत और स्वतंत्र नीति को दर्शाता है। रूस के साथ सहयोग न केवल भारत की रक्षा और आर्थिक क्षमताओं को बढ़ाएगा, बल्कि दुनिया में भारत की स्थिति को और मजबूत करेगा।
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