Central Sector Scheme;₹20,000 करोड़ का निर्यात मिशन: अमेरिका के टैरिफ का जवाब या भारत की वैश्विक रणनीति?

नई दिल्ली – वैश्विक व्यापार के बदलते समीकरणों के बीच भारत सरकार ने एक बड़ा कदम उठाया है। अमेरिका द्वारा भारतीय उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाने के फैसले के जवाब में भारत ने Central Sector Scheme में ₹20,000 करोड़ का निर्यात प्रोत्साहन मिशन शुरू करने की योजना बनाई है। यह मिशन न केवल तात्कालिक आर्थिक झटकों से निपटने का प्रयास है, बल्कि दीर्घकालिक रणनीति के तहत भारतीय निर्यात को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने की भी तैयारी है।
भारत सरकार ने अमेरिकी टैरिफ के जवाब में ₹20,000 करोड़ का निर्यात मिशन शुरू किया है Central Sector Scheme, जो MSME, टेक्सटाइल और वैश्विक बाजारों को नए आयाम देगा।

Central Sector Scheme
Central Sector Scheme

अमेरिका-भारत व्यापार विवाद

हाल ही में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने भारत पर यह आरोप लगाया कि वह “अच्छा व्यापारिक साझेदार” नहीं है और इसी के तहत कुछ प्रमुख भारतीय उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा दिए गए। इस फैसले का सीधा असर भारत के उन क्षेत्रों पर पड़ सकता है जो अमेरिका पर निर्यात के लिए अत्यधिक निर्भर हैं – जैसे टेक्सटाइल, जेम्स एंड ज्वैलरी, सी-फूड, मसाले, इंजीनियरिंग उत्पाद और ऑटो पार्ट्स।

वर्ष 2023-24 में भारत ने अमेरिका को कुल 78 बिलियन डॉलर का निर्यात किया था, जिसमें से लगभग 35% हिस्से पर इन नए टैरिफ का सीधा असर पड़ने की संभावना है। यही कारण है कि केंद्र सरकार ने इस चुनौती को अवसर में बदलने के लिए एक ठोस योजना तैयार की है।

क्या है यह ₹20,000 करोड़ का मिशन?

यह मिशन एक बहु-मंत्रालयी प्रयास है, जिसमें वाणिज्य मंत्रालय, MSME मंत्रालय, विदेश मंत्रालय और वित्त मंत्रालय की संयुक्त भूमिका होगी। अगले 5 से 6 वर्षों में इस मिशन पर ₹20,000 करोड़ का निवेश किया जाएगा। इस मिशन का उद्देश्य भारतीय निर्यातकों को वित्तीय, तकनीकी और नियामकीय सहायता देकर उन्हें वैश्विक प्रतिस्पर्धा के लिए तैयार करना है।

मिशन के प्रमुख उद्देश्य

  1. क्रेडिट सपोर्ट: छोटे और मध्यम उद्यमों (MSME) को आसान लोन, ब्याज सब्सिडी और वैकल्पिक वित्तीय मदद देकर उनकी कार्यशील पूंजी की समस्याएं हल करना।
  2. बाजार विविधीकरण: अमेरिका पर अत्यधिक निर्भरता को कम कर नए बाजारों – जैसे आसियान देश, मध्य पूर्व, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका – में भारतीय उत्पादों की पहुंच बढ़ाना।
  3. रेगुलेटरी सहायता: निर्यातकों को अंतरराष्ट्रीय क्वालिटी, पैकेजिंग और सुरक्षा मानकों को पूरा करने में मदद देना, ताकि गैर-टैरिफ बाधाओं को पार किया जा सके।
  4. ब्रांड इंडिया का प्रचार: ‘ब्रांड इंडिया’ की वैश्विक पहचान को मजबूत करने के लिए ट्रेड फेयर, अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शनियों और भारतीय दूतावासों के माध्यम से अभियान चलाना।
  5. डिजिटल इंफ्रास्ट्रक्चर: एकीकृत डिजिटल पोर्टल ‘भारत ट्रेड नेट’ की शुरुआत, जहां निर्यातकों को दस्तावेज़ीकरण, प्रोत्साहन योजनाओं और वित्तीय सहायता की पूरी जानकारी और आवेदन की सुविधा मिलेगी।
  6. गुणवत्ता और नवाचार: वैश्विक मानकों के अनुरूप उत्पाद गुणवत्ता सुधारना और पर्यावरण-अनुकूल उत्पादन तकनीकों को प्रोत्साहित करना।

इस मिशन को दो चरणों में लागू किया जाएगा:

  • पहला चरण (2025-26): ₹2,250 करोड़ का निवेश किया जाएगा, जिसमें टेक्सटाइल, मसाले और सी-फूड जैसे उच्च जोखिम वाले क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाएगी।
  • दूसरा चरण (2026-2031): इस चरण में शेष राशि का उपयोग कर समस्त निर्यात क्षेत्रों में संरचनात्मक सुधार, प्रोत्साहन और साझेदारी को विस्तार दिया जाएगा।
क्या यह मिशन WTO नियमों के अनुरूप होगा?

यह महत्वपूर्ण है कि भारत का यह मिशन विश्व व्यापार संगठन (WTO) के नियमों का उल्लंघन न करे। WTO के तहत प्रत्यक्ष सब्सिडी देना प्रतिबंधित है, इसलिए सरकार अप्रत्यक्ष सहायता पर फोकस कर रही है:

  • RoDTEP स्कीम (ड्यूटीज और टैक्स रेमिशन योजना)
  • ब्याज समानीकरण योजना
  • PLI स्कीम (उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन योजना)

इसके अलावा, क्षमता निर्माण, बुनियादी ढांचे में सुधार और प्रशिक्षण जैसे क्षेत्रों में निवेश किया जाएगा।

भारत की दोहरी रणनीति

भारत केवल टैरिफ के खिलाफ रक्षात्मक नहीं है, बल्कि कूटनीतिक रूप से भी सक्रिय है। भारत अमेरिका से टैरिफ में रियायत की मांग कर रहा है और बदले में कुछ अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ कम करने को तैयार है। साथ ही, भारत वैश्विक स्तर पर नए खरीदारों की तलाश में जुटा है। भारतीय दूतावासों, व्यापार संगठनों और डिजिटल B2B प्लेटफॉर्म के जरिए यह प्रयास तेज किया जा रहा है।

क्यों जरूरी है यह मिशन?

भारत के कुल टेक्सटाइल निर्यात का 40% हिस्सा अमेरिका को जाता है। इसके अलावा, अन्य प्रमुख क्षेत्रों में भी अमेरिकी बाजार की बड़ी हिस्सेदारी है। ऐसे में अमेरिका पर निर्भरता कम करना और उत्पादकों को नए बाजार उपलब्ध कराना अत्यंत आवश्यक है। यदि भारत जल्द कोई वैकल्पिक रणनीति नहीं अपनाता, तो वियतनाम, थाईलैंड जैसे देश इस अवसर का लाभ उठा सकते हैं।

निष्कर्ष

भारत सरकार का ₹20,000 करोड़ का निर्यात प्रोत्साहन मिशन एक दूरदर्शी और रणनीतिक पहल है। यह मिशन न केवल अमेरिकी टैरिफ के झटकों से निर्यातकों को राहत देगा, बल्कि भारत के वैश्विक व्यापार में प्रतिस्पर्धात्मक लाभ को भी मजबूत करेगा। WTO के नियमों का पालन करते हुए, MSME सेक्टर को सशक्त बनाना, बाजार विविधीकरण और ब्रांड इंडिया को प्रमोट करना – यह मिशन इन सभी लक्ष्यों को एक साथ लेकर चलता है।

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