आज भारत के सोशल मीडिया पर एक नई आवाज़ बुलंद हो रही है – #FundKaveriEngine. यह आंदोलन भारत को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में उठाया गया एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है। लोग चाह रहे हैं कि भारत अब अपने खुद के फाइटर जेट इंजन बनाए और दूसरे देशों पर निर्भर न रहे।
By-Sanjeet Choudhary
What is the Kaveri Engine;कावेरी इंजन की कहानी?
कावेरी इंजन एक खास टाइप का टर्बोफैन इंजन है, जिसे DRDO के गैस टरबाइन रिसर्च सेंटर (GTRE), बेंगलुरु में बनाया जा रहा है। इस प्रोजेक्ट की शुरुआत 1986 में हुई थी। इसका मकसद था कि यह इंजन भारत के हल्के लड़ाकू विमान तेजस (LCA Tejas), जिसे HAL ने बनाया है, को ताकत दे सके।
यह इंजन एक आधुनिक तकनीक से बना है, जिसमें कई उन्नत फीचर हैं जैसे:
- गोल आकार वाला फ्यूल जलाने वाला चैंबर (कम्बस्टर),
- तेज़ी से घूमने वाले कंप्रेसर,
- और खास तरीके से बनाए गए टरबाइन ब्लेड्स।
इस इंजन का लक्ष्य था कि यह लगभग 80 किलो न्यूटन (kN) ताकत (थ्रस्ट) दे सके, ताकि यह तेज़ गति और गर्मी में भी अच्छा प्रदर्शन कर सके।
कावेरी इंजन में क्या दिक्कतें आईं?
इस इंजन को बनाने में कई समस्याएं आईं। यह इंजन सिर्फ 70–75 kN ताकत ही दे पाया, जबकि तेजस जैसे फाइटर जेट के लिए 90–100 kN ताकत चाहिए होती है। इसके अलावा, यह इंजन तय वज़न से भारी था, जिससे विमान की परफॉर्मेंस पर असर पड़ा।
इन्हीं कारणों से 2008 में कावेरी इंजन को तेजस प्रोग्राम से हटा दिया गया। अब तेजस में अमेरिका का GE F404 या F414 इंजन लगाया जाता है।
अब कावेरी का क्या हो रहा है?
हालांकि इसे तेजस से हटा दिया गया, लेकिन कावेरी इंजन प्रोजेक्ट को पूरी तरह बंद नहीं किया गया। अब इसे कुछ नए प्रोजेक्ट्स के लिए तैयार किया जा रहा है जैसे:
- भारत का अगला फाइटर जेट प्रोजेक्ट AMCA,
- बिना पायलट वाले लड़ाकू ड्रोन (जैसे DRDO का “घातक”),
- और नौसेना के कुछ जहाज।
अब तक इस प्रोजेक्ट पर लगभग ₹3000 से ₹4400 करोड़ के बीच खर्च हुआ है। यानी सालाना औसतन सिर्फ ₹90 करोड़ ही लगे हैं। अगर इस तुलना में देखा जाए तो महाराष्ट्र की ‘लाडली बहना योजना’ पर अकेले ₹6000 करोड़ खर्च किए गए हैं। इससे यह साफ होता है कि भारत के पास फंड की कमी नहीं है, बस प्राथमिकता की जरूरत है।
क्यों जरूरी है भारत के लिए खुद का इंजन?
आज भारत तेजस फाइटर जेट बना रहा है, लेकिन उसमें इस्तेमाल होने वाला F404 इंजन अमेरिका से आता है। अगर यह इंजन समय पर न मिले, तो तेजस का निर्माण रुक जाता है। यही वजह है कि भारत को अपने खुद के फाइटर जेट इंजन की सख्त जरूरत है। इससे न सिर्फ तेजस का निर्माण तेज़ होगा, बल्कि देश सस्ती कीमत पर फाइटर जेट्स भी बना पाएगा और उन्हें एक्सपोर्ट भी कर सकेगा।
दूसरे देश क्या कर रहे हैं?
- ताइवान ने 15 साल में खुद का F125 इंजन बनाया।
- जापान ने FX5 इंजन तैयार किया है।
- यूएसए, फ्रांस, रूस, चीन, यूके पहले से ही अपने जेट इंजन बना रहे हैं।
अगर ये देश बना सकते हैं तो भारत क्यों नहीं? लोगों का सवाल यही है।
विदेशों पर निर्भरता कितनी खतरनाक है?
अगर युद्ध की स्थिति आ जाए और भारत को फौरन फाइटर जेट्स की ज़रूरत पड़े, तो हमें अमेरिका, फ्रांस या रूस जैसे देशों पर निर्भर रहना होगा। इससे देश की सुरक्षा भी खतरे में पड़ सकती है। अमेरिका ने पहले भी कई बार भारत के अंतरिक्ष और रक्षा प्रोजेक्ट्स को बाधित करने की कोशिश की है। इसरो इसका उदाहरण है।
आर्थिक और रणनीतिक फायदे?
विदेशी इंजन न सिर्फ महंगे होते हैं, बल्कि उन पर डिपेंडेंसी भी बढ़ती है। अगर भारत खुद का इंजन बनाता है, तो तेजस जैसे फाइटर जेट्स को हम तेज़ी से और सस्ते में बना सकते हैं। उन्हें एक्सपोर्ट करना भी आसान हो जाएगा। अभी के हालात में, अगर कोई देश तेजस खरीदना चाहता है, तो वह पूछेगा कि इंजन कहां से मिलेगा?
सरकार से अपील
जनता सरकार से मांग कर रही है कि कावेरी इंजन को प्राथमिकता दी जाए। फ्री स्कीमों में पैसा बांटने से अच्छा है कि ऐसी तकनीकी प्रगति पर पैसा लगाया जाए जो देश को लंबी अवधि में आत्मनिर्भर बना सके।
अंत में, यह अभियान सिर्फ एक मांग नहीं है — यह भविष्य के भारत की दिशा तय करने वाला कदम है। अगर हम आज कोशिश नहीं करेंगे, तो हमेशा दूसरों पर निर्भर रहेंगे।
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